अजमेर : सार्वभौमिक नियम है कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया जरूर होती है । कुदरत भी एक हद तक हर बदलाव को बर्दाश्त करती है जो मानव द्वारा किए जाते हैं लेकिन अति हो जाने पर कुदरत भी मानवीय क्रियाओं पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती है जो कि बेहद जबरदस्त और इंसान की सहनशक्ति के बाहर होती है। जो लोग इस बात पर यकीन ना करते हो वह एक बार अजमेर आ कर कुदरत की प्रतिक्रिया का नजारा देख सकते हैं....
कुछ वर्षों पहले कई साल तक मानसून के कमजोर रहने की वजह से आनासागर सूखने लगा था। लेकिन प्रशासन ने आनासागर को जिंदा रखने की कवायद करने की बजाय इसके गले पर कुल्हाड़ी चला दी। भ्रष्ट अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने मिलकर आनासागर के केचमेंट एरिया में पट्टे काटकर कॉलोनियां बसा दीं।
झील के किनारे का नजारा लेने के लिए लोगों ने भी बढ़-चढ़कर झील के केचमेंट एरिया में जमीनें ली और मकान बना लिए। लेकिन जैसा कि वक्त की आदत है कि वह बदलता जरूर है और हर क्रिया पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर देता है मौसम फिर पलटा मॉनसून फिर मजबूत हुआ और इस बार आना सागर भरने लगा।
जैसे ही अजमेर पर मॉनसून मेहरबान होने लगा वैसे ही आना सागर में पानी आने लगा, अब जिन लोगों ने आनासागर के कैचमेंट एरिया में जमीन खरीद कर अपने मकान बनवा लिए थे, कॉलोनी विकसित कर दी गई थी वहां परेशानियों की शुरुआत होने लगी। इन सब के बावजूद प्रशासन नहीं चेता। शहर के भ्रष्ट अफसरों ने तो जैसे इस झील को निगल जाने की ठान रखी थी। जनप्रतिनिधियों ने भी इस पूरे भ्रष्टाचार में उनका साथ दिया और झील की जमीन को पाटकर इस पर शॉपिंग मॉल भी विकसित कर दिए गए। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत सरकार और जनता दोनों को चूना लगाने के लिए आनासागर झील की जमीन पर ही सेवन वंडर्स जैसे चमत्कार खड़े कर दिए गए।
शहर के कई बुद्धिजीवियों, पर्यावरणविदों, समाजसेवियों ने इस भ्रष्टाचार और धांधली पर कई बार आवाज उठाई और इस गोरखधंधे को रोकने की कोशिश भी की। लेकिन उनकी उठती हुई आवाज को या तो दबा दिया गया या फिर नजरअंदाज कर दिया गया। कुछ ईमानदार अफसरों ने जब झील को बचाने के लिए अतिक्रमण के खिलाफ कार्यवाही की गई तो जयपुर में बैठे मंत्रियों और आला अधिकारियों ने इस झील का गला काटने वाले अतिक्रमणकारियों को पनाह दी और झील का अस्तित्व खतरे में पड़ गया। जो झील 12 कोस तक फैली हुई थी उसे अब आप किनारे खड़े होकर ही पूरा देख सकते हैं। हालात यह है कि इस झील की जमीन पर ही विश्राम स्थली भी विकसित कर दी गई थी जो अब पूरा साल पानी में विश्राम करती रहती है।
फायसागर झील जो साल 1975 में आखरी बार छलकी थी। अभी अपने रौद्र रूप में आ चुकी है और साल 2023 में अब फायसागर झील ने भी अपनी भराव क्षमता को पार कर छलकना शुरू कर दिया है। यहां गौर करने की बात यह है कि फायसागर झील बांडी नदी के जरिए आनासागर झील से जुड़ी हुई है। फायसागर का पानी बांडी नदी के जरिए आनासागर झील तक पहुंचता है। ऐसे में प्रशासन की लापरवाही भ्रष्ट आचरण और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते अब यह दोनों झील शहर को निगल जाने को तैयार बैठी हैं।
यदि बात करें जनप्रतिनिधियों की तो शहर में दो विधायक पिछले 15 सालों से अपना सियासी कब्जा जमाए बैठे हैं। यदि वह कहते हैं कि झील को निगलने का भ्रष्ट आचरण कांग्रेस के कार्यकाल में हुआ है तो वे यह भूल रहे हैं कि 15 सालों में उनकी पार्टी की सरकार भी सत्ता में आई थी। यदि कांग्रेस के नेता यह कहना चाहे कि बीजेपी के शासन काल में शहर की झीलों के साथ दुष्कर्म हुआ है तो वे यह भूल रहे हैं कि इस वक्त भी उनकी पार्टी सत्ता में है और पहले भी उनकी ही पार्टी सत्ता में थी। कुल मिलाकर दोनों पार्टियों के जनप्रतिनिधि अजमेर में मौजूद है। सब खुद को दूसरों से ज्यादा ताकतवर और बेहतर बताने में लगे रहते हैं। लेकिन शहर की सुध लेने के नाम पर यह अक्सर अपनी जिम्मेदारी दूसरे पर डालते नजर आते हैं। आनासागर झील शहर के बीचो बीच मौजूद एक ऐसी झील है जो शहर के उत्तर और दक्षिण दोनों विधानसभा क्षेत्रों को प्रभावित करती है। इतना ही नहीं इस का पानी पुष्कर विधानसभा क्षेत्र को भी प्रभावित करता है। लेकिन अफसोस यह है कि किसी भी जनप्रतिनिधि ने इन जिलों के रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया जिसका खामियाजा आम जनता भुगतने के लिए तैयार है।
निचले बस्ती इलाकों में अब हर हल्की सी बारिश जलभराव की स्थिति पैदा कर देती है। लोगों के घरों में घुटनों तक पानी भर जाता है । पूरी रात सामान को व्यवस्थित करने और खुद को बचाने में बीत जाती है। पानी उतरने के बाद कीचड़ लोगों को जीने नहीं देता। लेकिन इन सबके लिए क्या सिर्फ भ्रष्ट प्रशासन और लापरवाह जनप्रतिनिधि ही जिम्मेदार है? जनता अपने इस दर्द की खुद जिम्मेदार है। अधिकांश लोग मतदान के दिन वोट डालने तक नहीं जाते और जो जाते हैं वह सिर्फ वोट डालने को अपने कर्तव्य की इतिश्री समझते हैं। उन्होंने वोट डालकर अपना जनप्रतिनिधि चुन लिया। शहर के प्रति उनकी जिम्मेदारी खत्म हुई। अब जो करना है वह उनका चुना हुआ जनप्रतिनिधि करेगा। जनता के सोए हुए रवैया की वजह से जनप्रतिनिधि भी चैन की बंसी बजाते हैं और चुनावी वक्त में ही बरसाती मेंढक की तरह आते हैं।
क्या किसी जनप्रतिनिधि ने अपने सियासी कार्यकाल के दौरान एक बार भी शहर की सड़कों पर घूम कर आम जनता का दर्द जानने की कोशिश की है? क्या आम जनता ने शहर की इतनी दुर्गति होते हुए भी आवाज उठाने की कोशिश की? सब मौन दर्शक बनकर तमाशा देखते रहे। कुदरत के साथ खिलवाड़ होता रहा और अब कुदरत इस क्रिया की प्रतिक्रिया देने को तैयार बैठी है। हो सकता है साल 2023 में अजमेर शहर एक बार फिर 1975 की बाढ़ से भी ज्यादा भयानक अनुभव को महसूस करें। अपने कड़वे अनुभव के लिए हम सभी को तैयार रहना होगा। बाकी जो लोग सिर्फ जनप्रतिनिधियों की चमचागिरी करके खुश रहना जानते हैं वह इस कड़वे अनुभव को भी विपक्षी दलों या अपने विरोधी नेताओं की चाल ही कहेंगे। लेकिन अब देखना यह है कि मॉनसून के इस सीजन में अजमेर की किस्मत क्या करवट लेती है।